अनुशासन लागू करने हेतु सुधारात्मक उपाय के लिये दण्ड के प्रावधान का अभाव
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अनुशासन लागू करने हेतु सुधारात्मक उपाय के लिये दण्ड के प्रावधान का अभाव

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 04-Jul-2024

जोमी बनाम केरल राज्य

“स्कूलों में अनुशासन लागू करने के लिये सरल सुधारात्मक उपायों का उपयोग करने के लिये शिक्षकों का अभियोजन नहीं किया जा सकता”।

न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने जोमी बनाम केरल राज्य के मामले में माना है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ अधिनियम) के प्रावधानों के अनुसार स्कूलों में अनुशासन लागू करने के लिये सरल सुधारात्मक उपायों का उपयोग करने के लिये शिक्षकों का अभियोजन नहीं किया जा सकता है।

जोमी बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के अधीन एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कोडानाडु पुलिस स्टेशन के अपराध संख्या 690/2018 में अनुलग्नक C अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की गई है, जो अब उसके विरुद्ध न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट- III, पेरुंबवूर की फाइलों में लंबित है।
  • अभियोजन पक्ष के आरोप का सारांश एवं सार यह है कि 13 वर्षीय पीड़िता, जो 8वीं कक्षा में पढ़ती थी, को आरोपी द्वारा तब पीटा गया, जब उसने आरोपी द्वारा आयोजित एक टेस्ट पेपर में कम अंक प्राप्त किये। आरोपी अंग्रेज़ी शिक्षक और सेंट जोसेफ स्कूल, थोट्टुवा का प्रिंसिपल है, जहाँ अप्राप्तवय लड़की पढ़ती थी।
  • पीड़िता के बयान को दर्ज करते हुए भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 324 एवं JJ अधिनियम की धारा 82 के अधीन दण्डनीय अपराध का आरोप लगाते हुए अपराध दर्ज किया गया।
  • याचिकाकर्त्ता के अधिवक्ता ने आवेदन किया कि JJ अधिनियम की धारा 82 के अधीन कारित अपराध वर्तमान मामले में शमनीय नहीं होगा, क्योंकि धारा 82 किसी भी बाल देखभाल संस्थान के प्रभारी या नियोजित व्यक्ति द्वारा दिये गए शारीरिक दण्ड से संबंधित है, जो बच्चे को अनुशासित करने के उद्देश्य से शारीरिक दण्ड देता है।
  • याचिकाकर्त्ता के अधिवक्ता ने आगे कहा कि JJअधिनियम की धारा 75 के अधीन अपराध भी शिक्षकों को माता-पिता द्वारा दिये गए निहित अधिकार के आधार पर बच्चों को अनुशासित करने के लिये सद्भावनापूर्वक कम सज़ा देने के लिये उत्तरदायी नहीं मानता। उच्च न्यायालय ने कोडानाडु पुलिस स्टेशन के अपराध संख्या 690/2018 में याचिका अनुलग्नक C अंतिम रिपोर्ट को अनुमति दी, जो न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट- III, पेरुंबवूर की फाइलों में लंबित है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

टिप्पणी:

न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने कहा कि यदि शिक्षकों को विद्यालय या शैक्षणिक संस्थान के अनुशासन को बनाए रखने के लिये सरल एवं कम बोझिल सुधारात्मक उपाय तैयार करने के लिये JJ अधिनियम के प्रावधानों के अधीन शामिल किया जाता है, तो विद्यालय या संस्थान का अनुशासन खतरे में पड़ जाएगा। साथ ही, जब शिक्षक अपने अधिकार का सीमा से अधिक उपयोग करता है तथा गंभीर चोट या इसी तरह के शारीरिक हमले का कारण बनता है, तो निश्चित रूप से JJ अधिनियम के दण्डात्मक प्रावधान सीधे लागू होंगे।

इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा संदर्भित मामले:

  •  के. ए. अब्दुल वाहिद बनाम केरल राज्य (2005):
  • इस मामले में, यह देखा गया कि जब किसी बच्चे को मदरसा या विद्यालय में भेजा जाता है, तो उक्त बच्चे के माता-पिता मास्टर या कक्षा शिक्षक या प्रधानाध्यापक/प्रधानाध्यापिका को अनुशासन लागू करने तथा उनके सामने या कक्षाओं में गलतियाँ करने वाले छात्रों को सुधारने का निहित अधिकार देते हैं।
  • यदि अनुशासन बनाए रखने की प्रक्रिया में तथा उसे स्कूल के निर्धारित मानकों का पालन कराने के लिये, जो कि बच्चे के उत्थान एवं विकास के लिये आवश्यक हैं, जिसमें स्कूल के अंदर एवं बाहर उसके चरित्र व आचरण का विकास भी शामिल है, ताकि उसे नागरिक के अच्छे गुणों के विषय में जागरूक होने के लिये प्रशिक्षित किया जा सके, उनमें से किसी के द्वारा शारीरिक दण्ड दिया जाता है, तो इसे छात्र को चोट पहुँचाने के आशय से किया गया कृत्य नहीं कहा जा सकता है।
  • राजन उर्फ राजू, पुत्र चोयी बनाम पुलिस उपनिरीक्षक, फेरोके पुलिस स्टेशन व अन्य (2019):
  • इस मामले में, यह कहा गया कि शिक्षक द्वारा छात्र को पहुँचाई गई चोट की प्रकृति यह निर्धारित करेगी कि उसके विरुद्ध दण्डात्मक प्रावधानों के अधीन कार्यवाही की जा सकती है या नहीं।
  • न्यायालय ने कहा कि यदि शिक्षक बेलगाम क्रोध, उत्तेजना या गुस्से में बच्चे को चोट पहुँचाता है, या अनुचित शारीरिक चोट या नुकसान पहुँचाता है तो उसके कृत्यों को क्षमा नहीं किया जा सकता।

इसमें प्रासंगिक विधिक प्रावधान क्या हैं?

JJ अधिनियम की धारा 82:

यह धारा शारीरिक दण्ड से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) बाल देखभाल संस्था का भारसाधक या उसमें नियोजित कोई व्यक्ति, जो बालक को अनुशासित करने के उद्देश्य से बालक को शारीरिक दण्ड देता है, प्रथम दोषसिद्धि पर दस हज़ार रुपए के अर्थदण्ड से दण्डनीय होगा तथा प्रत्येक पश्चातवर्ती अपराध के लिये तीन मास तक के कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डनीय होगा।

(2) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी संस्था में नियोजित कोई व्यक्ति उस उपधारा के अधीन किसी अपराध के लिये दोषी पाया जाता है, तो ऐसा व्यक्ति सेवा से पदच्युति का भी दायी होगा तथा तत्पश्चात् उसे बालकों के साथ सीधे कार्य करने से भी वंचित कर दिया जाएगा।

(3) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी संस्था में किसी शारीरिक दण्ड की रिपोर्ट की जाती है तथा ऐसी संस्था का प्रबंधन किसी जाँच में सहयोग नहीं करता है या समिति या बोर्ड या न्यायालय या राज्य सरकार के आदेशों का पालन नहीं करता है, तो संस्था के प्रबंधन का भारसाधक व्यक्ति कम से कम तीन वर्ष की अवधि के कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा साथ ही वह एक लाख रुपए तक के अर्थदण्ड से भी दण्डित किया जा सकेगा।

JJ अधिनियम की धारा 75:

  • यह धारा बच्चे के प्रति क्रूरता के लिये दण्ड से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
  • जो कोई भी, किसी बच्चे का वास्तविक प्रभार या नियंत्रण रखते हुए, बच्चे पर हमला करता है, उसे छोड़ देता है, दुर्व्यवहार करता है, उसे उजागर करता है या जानबूझकर उसकी उपेक्षा करता है या बच्चे पर हमला, उसे छोड़ देना, दुर्व्यवहार करना, उजागर करना या उसकी उपेक्षा करवाना या करवाना जिससे बच्चे को अनावश्यक मानसिक या शारीरिक पीड़ा होने की संभावना हो, तो उसे तीन वर्ष तक का कारावास या एक लाख रुपए का अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
  • परंतु यदि यह पाया जाता है कि जैविक माता-पिता द्वारा बालक का ऐसा परित्याग उनके नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण हुआ है, तो यह माना जाएगा कि ऐसा परित्याग जानबूझकर नहीं किया गया है तथा इस धारा के दण्डात्मक उपबंध ऐसे मामलों में लागू नहीं होंगे
  • आगे यह भी प्रावधान है कि यदि ऐसा अपराध किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो किसी ऐसे संगठन में नियोजित है या उसका प्रबंध करता है, जिसे बालक की देखभाल एवं संरक्षण का दायित्व सौंपा गया है, तो उसे कठोर कारावास से, जो पाँच वर्ष तक का हो सकेगा तथा अर्थदण्ड से, जो पाँच लाख रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।
  • बशर्ते कि पूर्वोक्त क्रूरता के कारण यदि बालक शारीरिक रूप से अक्षम हो जाता है या उसे मानसिक बीमारी हो जाती है या वह नियमित कार्य करने के लिये मानसिक रूप से अयोग्य हो जाता है या उसके जीवन या अंग को खतरा होता है, तो ऐसा व्यक्ति कम-से-कम तीन वर्ष के कठोर कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे अधिकतम दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा और वह पाँच लाख रुपए के अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।

IPC की धारा 324 क्या है?

  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 खतरनाक हथियारों या साधनों द्वारा स्वेच्छा से चोट पहुँचाने से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई, धारा 334 द्वारा प्रदान की गई स्थिति को छोड़कर, गोली चलाने, छुरा घोंपने या काटने के किसी उपकरण द्वारा, या किसी ऐसे उपकरण द्वारा, जिसका उपयोग अपराध के हथियार के रूप में करने से मृत्यु हो जाने की संभावना हो, या आग या किसी गर्म पदार्थ द्वारा, या किसी विष या किसी संक्षारक पदार्थ द्वारा, या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसे साँस के साथ अंदर लेना, निगलना या रक्त में मिलना मानव शरीर के लिये हानिकारक हो, या किसी पशु द्वारा स्वेच्छा से चोट पहुँचाता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या अर्थदण्ड से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।